Sometimes we feel sad and want to express our sadness. So Sad Shayari is the best option to express your inner sadness on social networks. Here we are having a large collection of Sad Shayari in Hindi on this page. You can choose or select all type of Shayari according to your mood and share it where you want.
There is much reason for getting upset. And the best way to get relief of these heart burdens is by reading the sad poem, Sad Shayri, and sad SMS. You can find a huge number of sad quotes with images on this page.
Sad Shayari
As we all know that everyone spends a lot of time on social network. And this is the best platform for express your inner feelings whatever it may be. And for expressing your heart feelings all of you need to have some amazing and great content in form of quotes or images. Today here we are come with a large collection of Sad Shayari with quotes and images.
वफ़ा के बाब में इल्ज़ाम-ए-आशिक़ी न लिया
कि तेरी बात की और तेरा नाम भी न लिया
फल जाए मोहब्बत तो मोहब्बत है मोहब्बत
और रास न आए तो मुसीबत है मोहब्बत
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
गुज़रा है जो कुछ हम पर तुम ने भी सुना होगा
हम से क्या हो सका मोहब्बत में
ख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके
तुम ने हमें भुला दिया हम न तुम्हें भुला सके
वही फिर मुझे याद आने लगे हैं
जिन्हें भूलने में ज़माने लगे हैं
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है
मेरी क़िस्मत में ग़म गर इतना था
दिल भी या-रब कई दिए होते
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
जिस तरह ख़्वाब मिरे हो गए रेज़ा रेज़ा
उस तरह से न कभी टूट के बिखरे कोई
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल मगर
लोग साथ आते गए और कारवाँ बनता गया
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए
मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया
मोहब्बत रंग दे जाती है जब दिल दिल से मिलता है
मगर मुश्किल तो ये है दिल बड़ी मुश्किल से मिलता है
सौ बार जिस को देख के हैरान हो चुके
जी चाहता है फिर उसे इक बार देखना
नाज़ुकी उस के लब की क्या कहिए
पंखुड़ी इक गुलाब की सी है
अशआ'र मिरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शेर फ़क़त उन को सुनाने के लिए हैं
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद
तुम्हें भी नींद सी आने लगी है थक गए हम भी
चलो हम आज ये क़िस्सा अधूरा छोड़ देते हैं
अब भी आ जाते तो रह जाती हमारी ज़िंदगी
बाद मरने के अगर ख़त का जवाब आया तो क्या
मोहब्बत में हम तो जिए हैं जिएँगे
वो होंगे कोई और मर जाने वाले
ये बद-नसीबी नहीं है तो और फिर क्या है
सफ़र अकेले किया हम-सफ़र के होते हुए
उस का क्या है तुम न सही तो चाहने वाले और बहुत
तर्क-ए-मोहब्बत करने वालो तुम तन्हा रह जाओगे
वो कोई दोस्त था अच्छे दिनों का
जो पिछली रात से याद आ रहा है
वो तो ख़ुश-बू है हवाओं में बिखर जाएगा
मसअला फूल का है फूल किधर जाएगा
बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या
हम को उन से वफ़ा की है उम्मीद
जो नहीं जानते वफ़ा क्या है
ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की
आग़ाज़-ए-मोहब्बत से अंजाम-ए-मोहब्बत तक
गुज़रा है जो कुछ हम पर तुम ने भी सुना होगा
तुम सुनो या न सुनो हाथ बढ़ाओ न बढ़ाओ
डूबते डूबते इक बार पुकारेंगे तुम्हें
ये कार-ए-ज़िंदगी था तो करना पड़ा मुझे
ख़ुद को समेटने में बिखरना पड़ा मुझे
कितना है बद-नसीब 'ज़फ़र' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में
कोई हम-दम न रहा कोई सहारा न रहा
हम किसी के न रहे कोई हमारा न रहा
मुद्दत के बा'द उस ने जो की लुत्फ़ की निगाह
जी ख़ुश तो हो गया मगर आँसू निकल पड़े
ख़ुद को इतना भी न बचाया कर
बारिशें हों तो भीग जाया कर
तुम मिरे पास होते हो गोया
जब कोई दूसरा नहीं होता
था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दीवाली
न तुम ही लौट के आए न वक़्त-ए-शाम हुआ
मिरी शराब की तौबा पे जा न ऐ वाइज़
नशे की बात नहीं ए'तिबार के क़ाबिल
वर्ना इंसान मर गया होता
कोई बे-नाम जुस्तुजू है अभी
ये सिखाया है दोस्ती ने हमें
दोस्त बन कर कभी वफ़ा न करो
अब तो हर हाथ का पत्थर हमें पहचानता है
उम्र गुज़री है तिरे शहर में आते जाते
तेरे आने की क्या उमीद मगर
कैसे कह दूँ कि इंतिज़ार नहीं
ये सोचना ग़लत है कि तुम पर नज़र नहीं
मसरूफ़ हम बहुत हैं मगर बे-ख़बर नहीं
जब हुआ ज़िक्र ज़माने में मोहब्बत का 'शकील'
मुझ को अपने दिल-ए-नाकाम पे रोना आया
तेरी महफ़िल से उठाता ग़ैर मुझ को क्या मजाल
देखता था मैं कि तू ने भी इशारा कर दिया
दरिया हो या पहाड़ हो टकराना चाहिए
जब तक न साँस टूटे जिए जाना चाहिए
एक आदत सी बन गई है तू
और आदत कभी नहीं जाती
ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में
एक पुराना ख़त खोला अनजाने में
ख़ुदा की इतनी बड़ी काएनात में मैं ने
बस एक शख़्स को माँगा मुझे वही न मिला
पलट कर फिर यहीं आ जाएँगे हम
वो देखे तो हमें आज़ाद कर के
कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग
हम को जीने की भी उम्मीद नहीं
पा सकेंगे न उम्र भर जिस को
जुस्तुजू आज भी उसी की है
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
कुछ तुम्हारी निगाह काफ़िर थी
कुछ मुझे भी ख़राब होना था
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
ये ठीक है नहीं मरता कोई जुदाई में
ख़ुदा किसी को किसी से मगर जुदा न करे
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
आइना देख के कहते हैं सँवरने वाले
आज बे-मौत मरेंगे मिरे मरने वाले
दुश्मनी लाख सही ख़त्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिए
अब के सावन में शरारत ये मिरे साथ हुई
मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई
हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके
तुम ने हमें भुला दिया हम न तुम्हें भुला सके
आ जाए न दिल आप का भी और किसी पर
देखो मिरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा
इस उम्मीद पे रोज़ चराग़ जलाते हैं
आने वाले बरसों ब'अद भी आते हैं
कौन सी बात है जो उस में नहीं
उस को देखे मिरी नज़र से कोई
किसी को अपने अमल का हिसाब क्या देते
सवाल सारे ग़लत थे जवाब क्या देते
रहता है इबादत में हमें मौत का खटका
हम याद-ए-ख़ुदा करते हैं कर ले न ख़ुदा याद
वो झूट बोल रहा था बड़े सलीक़े से
मैं ए'तिबार न करता तो और क्या करता
सवाल-ए-वस्ल पर कुछ सोच कर उस ने कहा मुझ से
अभी वादा तो कर सकते नहीं हैं हम मगर देखो
होती कहाँ है दिल से जुदा दिल की आरज़ू
जाता कहाँ है शम्अ को परवाना छोड़ कर
इस का रोना नहीं क्यूँ तुम ने किया दिल बर्बाद
इस का ग़म है कि बहुत देर में बर्बाद किया
कैसे टुकड़ों में उसे कर लूँ क़ुबूल
जो मिरा सारे का सारा था कभी
तुम सुनो या न सुनो हाथ बढ़ाओ न बढ़ाओ
डूबते डूबते इक बार पुकारेंगे तुम्हें
मिज़ाज अपना मिला ही नहीं ज़माने से
न मैं हुआ कभी इस का न ये ज़माना मिरा
वो जंगलों में दरख़्तों पे कूदते फिरना
बुरा बहुत था मगर आज से तो बेहतर था
यहाँ किसी को भी कुछ हस्ब-ए-आरज़ू न मिला
किसी को हम न मिले और हम को तू न मिला
हमें है शौक़ कि बे-पर्दा तुम को देखेंगे
तुम्हें है शर्म तो आँखों पे हाथ धर लेना
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
पहले-पहल तो मैं तिरा यक-तरफ़ा इश्क़ था
अब मेरा हाल तुझ से ज़ियादा ख़राब है
तुम्हारा सिर्फ़ हवाओं पे शक गया होगा
चराग़ ख़ुद भी तो जल जल के थक गया होगा
फिर ख़्वाहिशों को कोई सराए न मिल सकी
इक और रात ख़ुद में ठहरना पड़ा मुझे
मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया
उस की याद आई है साँसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है
बिछड़ के भी वो मिरे साथ ही रहा हर दम
सफ़र के बा'द भी मैं रेल में सवार रहा
दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
इश्क़ में क्या नुक़सान नफ़अ है हम को क्या समझाते हो
हम ने सारी उम्र ही यारो दिल का कारोबार किया
कोई तुम सा भी काश तुम को मिले
मुद्दआ हम को इंतिक़ाम से है
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता
कभी तो चौंक के देखे कोई हमारी तरफ़
किसी की आँख में हम को भी इंतिज़ार दिखे
वो न आएगा हमें मालूम था इस शाम भी
इंतिज़ार उस का मगर कुछ सोच कर करते रहे
लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो
होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो
बात हक़ है तो फिर क़ुबूल करो
ये न देखो कि कौन कहता है
न तुम होश में हो न हम होश में हैं
चलो मय-कदे में वहीं बात होगी
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई
जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
होश वालों को ख़बर क्या बे-ख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िंदगी क्या चीज़ है
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
हमारे ऐब ने बे-ऐब कर दिया हम को
यही हुनर है कि कोई हुनर नहीं आता
देखते ही देखते दुनिया से मैं उठ जाऊँगा
देखती की देखती रह जाएगी दुनिया मुझे
आए तो यूँ कि जैसे हमेशा थे मेहरबान
भूले तो यूँ कि गोया कभी आश्ना न थे
माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतिज़ार देख
मुद्दत के ब'अद आज उसे देख कर 'मुनीर'
इक बार दिल तो धड़का मगर फिर सँभल गया
आज तो बे-सबब उदास है जी
इश्क़ होता तो कोई बात भी थी
अब तो ये शायद किसी भी काम आ सकता नहीं
आप ही ले जाइए मेरे दिल-ए-नादान को
इक रोज़ खेल खेल में हम उस के हो गए
और फिर तमाम उम्र किसी के नहीं हुए
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
तंग आ चुके हैं कशमकश-ए-ज़िंदगी से हम
ठुकरा न दें जहाँ को कहीं बे-दिली से हम
आँख भर आई किसी से जो मुलाक़ात हुई
ख़ुश्क मौसम था मगर टूट के बरसात हुई
न कोई वा'दा न कोई यक़ीं न कोई उमीद
मगर हमें तो तिरा इंतिज़ार करना था
ये और बात कि उन को यक़ीं नहीं आया
प कोई बात तो बरसों में हम ने की यारो
तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ
जान लेनी थी साफ़ कह देते
क्या ज़रूरत थी मुस्कुराने की
तेरी आँखों का कुछ क़ुसूर नहीं
हाँ मुझी को ख़राब होना था
रोज़ अच्छे नहीं लगते आँसू
ख़ास मौक़ों पे मज़ा देते हैं
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिस को भी देखना हो कई बार देखना
वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
आदत इस की भी आदमी सी है
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला
मिरी ज़बान के मौसम बदलते रहते हैं
मैं आदमी हूँ मिरा ए'तिबार मत करना
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक़ नहीं
चंद लम्हों में फ़ैसला न करो
कूचा-ए-इश्क़ में निकल आया
जिस को ख़ाना-ख़राब होना था
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब
आज तुम याद बे-हिसाब आए
अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए
तेरा मिलना ख़ुशी की बात सही
तुझ से मिल कर उदास रहता हूँ
तुम मुझे छोड़ के जाओगे तो मर जाऊँगा
यूँ करो जाने से पहले मुझे पागल कर दो
कभी ख़ुद पे कभी हालात पे रोना आया
बात निकली तो हर इक बात पे रोना आया
अपनी हालत का ख़ुद एहसास नहीं है मुझ को
मैं ने औरों से सुना है कि परेशान हूँ मैं
तुम क्या जानो अपने आप से कितना मैं शर्मिंदा हूँ
छूट गया है साथ तुम्हारा और अभी तक ज़िंदा हूँ
उस ने पूछा था क्या हाल है
और मैं सोचता रह गया
दीवारों से मिल कर रोना अच्छा लगता है
हम भी पागल हो जाएँगे ऐसा लगता है
वो बात सोच के मैं जिस को मुद्दतों जीता
बिछड़ते वक़्त बताने की क्या ज़रूरत थी
हद से बढ़े जो इल्म तो है जहल दोस्तो
सब कुछ जो जानते हैं वो कुछ जानते नहीं
क़ब्रों में नहीं हम को किताबों में उतारो
हम लोग मोहब्बत की कहानी में मरें हैं
मुस्तक़िल बोलता ही रहता हूँ
कितना ख़ामोश हूँ मैं अंदर से
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामुशी क्या चीज़ है
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
ज़िंदगी शायद इसी का नाम है
दूरियाँ मजबूरियाँ तन्हाइयाँ
मैं मय-कदे की राह से हो कर निकल गया
वर्ना सफ़र हयात का काफ़ी तवील था
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है
तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं
मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था
यूँ लगे दोस्त तिरा मुझ से ख़फ़ा हो जाना
जिस तरह फूल से ख़ुशबू का जुदा हो जाना
चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए
ख़ुदा हाफ़िज़ कहा बोसा लिया घर से निकल आए
किस ने भीगे हुए बालों से ये झटका पानी
झूम के आई घटा टूट के बरसा पानी
देखी थी एक रात तिरी ज़ुल्फ़ ख़्वाब में
फिर जब तलक जिया मैं परेशान ही रहा
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
जाने किन रिश्तों ने मुझ को बाँध रक्खा है कि मैं
मुद्दतों से आँधियों की ज़द में हूँ बिखरा नहीं
आज तो बे-सबब उदास है जी
इश्क़ होता तो कोई बात भी थी
तूफ़ां से बच के डूबी है कश्ती कहां न पूछ
साहिल भी ए'तिबार के क़ाबिल नहीं रहा
अपने ख़िलाफ़ फ़ैसला ख़ुद ही लिखा है आप ने
हाथ भी मल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
है ख़ुशी इंतिज़ार की हर दम
मैं ये क्यूँ पूछूँ कब मिलेंगे आप
एक हमें आवारा कहना कोई बड़ा इल्ज़ाम नहीं
दुनिया वाले दिल वालों को और बहुत कुछ कहते हैं
गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैं ने
वो कौन है जिसे देखा नहीं कभी मैं ने
लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
कौन से शहर में होता है, किधर होता है
हम घूम चुके बस्ती बन में
इक आस की फाँस लिए मन में
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ
अच्छा ख़ासा बैठे बैठे गुम हो जाता हूँ
अब मैं अक्सर मैं नहीं रहता तुम हो जाता हूँ
करूँगा क्या जो मोहब्बत में हो गया नाकाम
मुझे तो और कोई काम भी नहीं आता
आते आते मिरा नाम सा रह गया
उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया
तुम्हारे शहर का मौसम बड़ा सुहाना लगे
मैं एक शाम चुरा लूँ अगर बुरा न लगे
जिस को तुम भूल गए याद करे कौन उस को
जिस को तुम याद हो वो और किसे याद करे
इश्क़ ने 'ग़ालिब' निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में
जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में
ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई कि मर जाने को जी चाहता है
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा
तुम से मिले तो ख़ुद से ज़ियादा
तुम को अकेला पाया हम ने
मुझ को अक्सर उदास करती है
एक तस्वीर मुस्कुराती हुई
न पूछ कैसे गुज़रती है ज़िंदगी ऐ दोस्त
बड़ी तवील कहानी है फिर कभी ऐ दोस्त
तुम्हारे साथ ये मौसम फ़रिश्तों जैसा है
तुम्हारे बाद ये मौसम बहुत सताएगा
ख़ंजर चले किसी पे तड़पते हैं हम 'अमीर'
सारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
इश्क़ से तबीअत ने ज़ीस्त का मज़ा पाया
दर्द की दवा पाई दर्द-ए-बे-दवा पाया
बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता
दोस्तों को भी मिले दर्द की दौलत या रब
मेरा अपना ही भला हो मुझे मंज़ूर नहीं
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे
दर्द-ए-दिल कितना पसंद आया उसे
मैं ने जब की आह उस ने वाह की
आदत के ब'अद दर्द भी देने लगा मज़ा
हँस हँस के आह आह किए जा रहा हूँ मैं
जब कि पहलू से यार उठता है
दर्द बे-इख़्तियार उठता है
मिरे लबों का तबस्सुम तो सब ने देख लिया
जो दिल पे बीत रही है वो कोई क्या जाने
अब तो ये भी नहीं रहा एहसास
दर्द होता है या नहीं होता
तुम्हारा दिल मिरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता ये पत्थर हो नहीं सकता
दिल को तिरी चाहत पे भरोसा भी बहुत है
और तुझ से बिछड़ जाने का डर भी नहीं जाता
दिल टूटने से थोड़ी सी तकलीफ़ तो हुई
लेकिन तमाम उम्र को आराम हो गया
दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे
बुत-ख़ाना तोड़ डालिए मस्जिद को ढाइए
दिल को न तोड़िए ये ख़ुदा का मक़ाम है
न तो मेरा कोई हबीब था न तो मेरा कोई रक़ीब था
तुझे खोना मेरा नसीब था मुझे तुझसे कोई गिला नहीं
मुआ'फ़ी और इतनी सी ख़ता पर
सज़ा से काम चल जाता हमारा
मुद्दतें हो गईं 'फ़राज़' मगर
वो जो दीवानगी कि थी है अभी
देखने के लिए सारा आलम भी कम
चाहने के लिए एक चेहरा बहुत
अब वही करने लगे दीदार से आगे की बात
जो कभी कहते थे बस दीदार होना चाहिए
देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन से
तारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से
मुझे ज़िंदगी की दुआ देने वाले
हँसी आ रही है तिरी सादगी पर
कोई चारह नहीं दुआ के सिवा
कोई सुनता नहीं ख़ुदा के सिवा
माँगी थी एक बार दुआ हम ने मौत की
शर्मिंदा आज तक हैं मियाँ ज़िंदगी से हम
कभी जो ख़्वाब था वो पा लिया है
मगर जो खो गई वो चीज़ क्या थी
नहीं दुनिया को जब पर्वा हमारी
तो फिर दुनिया की पर्वा क्यूँ करें हम
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है
थोड़ी सी अक़्ल लाए थे हम भी मगर 'अदम'
दुनिया के हादसात ने दीवाना कर दिया
दुनिया बस इस से और ज़ियादा नहीं है कुछ
कुछ रोज़ हैं गुज़ारने और कुछ गुज़र गए
कैसे आ सकती है ऐसी दिल-नशीं दुनिया को मौत
कौन कहता है कि ये सब कुछ फ़ना हो जाएगा
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो 'फ़राज़'
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला
दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
शर्तें लगाई जाती नहीं दोस्ती के साथ
कीजे मुझे क़ुबूल मिरी हर कमी के साथ
इस से पहले कि बे-वफ़ा हो जाएँ
क्यूँ न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएँ
दुश्मनों से प्यार होता जाएगा
दोस्तों को आज़माते जाइए
ऐ दोस्त हम ने तर्क-ए-मोहब्बत के बावजूद
महसूस की है तेरी ज़रूरत कभी कभी
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